अम्मी का सपना
अबु कि महनत कहती हूँ
लेकर डोर एक नए
देश मैं
पढ़ लिखकर एक डाक्टर
के वेश में
के वेश में
आया था कुछ कमाने ,
अमी अबु को उनकी
अमी अबु को उनकी
खुशियाँ लौटाने
एक ज़ज्बा एक लगन
इंसानों कि सेवा करता रहा
धर्मो के अदाम्बरों से दूर
अपने पेशे में उतरता रहा
वर्षों जो हात करते रहे
बीमारों कि देख भाल
आज वो हात झूलते हैं
हथ्कादियों में बिल्कुल बहाल
शक कि एक आंधी आई
शक कि एक आंधी आई
किसने है यह
बिसात बिछाई
बिसात बिछाई
अमी ओर अबु के अरमानों को
किसने आग लगा दी
सदार्न्द डाक्टर को
बना दिया खूंखार आतंकवादी
घर को लुटाने लगे थे
टीवी चैनल
आमी आबू के सपने
बहते उनकी आँखों से निकल निकल
देखकर टी के परदे पर
देखकर टी के परदे पर
एक कला सच
उन्होने जनम दिया है
एक आतंकवादी को
मासूमों के मौत के
फरियादी को
उनको नमाज पढ़ते वक़्त
ये ख्याल आता था
कि खुदा कहीं तो होगा
फिर क्यों नही उनको सून पाता
झिलत उनको किसकी दुआ से मिली
वो समझ नही पाए
जिधर देखो पत्रकार ओर प्रश्न खडे थे
वो जाएँ भी तो कहाँ जाएँ
पर आज बचपन में पड़ी
सावित्री ओर सत्यकाम कि कथा याद आती है
जब भी मेरी पत्नी धीरे से मुस्कुराती है
आज उसी के विश्वास के बदौलत
जिंदा हूँ
मैं किसी ओर से नही
अपने देश ओर
उसके लोगों से शर्मिंदा हूँ
मैं निर्दोष था जेल में सड़ता रहा
उन अजनबी लोगो ने मेरी मदत कि
मेरा गावं ओर देश चुपचाप देखता रहा
मानो उन्होने ने मेरी गलती मान ली
मैं जिंदगी कि ज़ंग में जीत कर भी हार गया
क्यूंकि मेरी नज़रों में खोकला
अपनों का प्यार हो गया।
अपनों का प्यार हो गया।
ना पंडित ना साद
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