कोई प्यार में क़ैद करता है
कोई शब्दों के जाल बुनता है.
सजाना चाहता है अपने दिल में
पर कह नहीं पाता महफ़िल में
कोई ऊँचे महल के सपने दिखाता है
कोई अपने पैसे का ज़ोर दिखाता है.
सोने में तोल कर ग़रीब को ब्याहता है
चार दीवारी में हसरत को दफनाता है
रोटी और कपड़े में बिक जाती ममता है .
डोली के इंतज़ार में उठ जाती चिता है
कैसे कैसे लोग षड्यंत्र रचते हैं
“नीरा” सभी इस रूप से डरते है
Monday, December 01, 2008
Saturday, November 29, 2008
विष से भरा ये "वी' अक्षर...
" वी" अक्षर इतना विनाशकारी क्यूँ है
क्यूँ इस्स.से मिलते शब्द रोते हैं
वैश्या, विकलांग, विधवा विधुर
दर्द से भरे होते हैं.
वैश्या कोई भी जानम से नही होती
हालत या मजबूरी उससे कोठे पर
ले जाती है., भांध कर घूँगरू
नाचती है रिज़ाति हैं. छ्छूप कर
आँसू बहती है.
दो प्यार के बोलों को तरस
जाती है,
मौत की दुहाई हा रोज़
खुदा से मांगती
विकलांग कोई भी
मर्ज़ी से नही जानम लेता
फिर क्यूँ सब घृणा से देखते है
उससे भी हक़ है
उतना ही अधिकार है
जितना सब को है.
क्यूँ उससे चार दीवारी तक ही
समैट कर रखते है
क्या उससे प्यरा का हुक़ नही
क्या उसके जज़्बातों में
कमी है-----------
या दुनिया का दिल इतना छोटा है
बताओ यह किसका कसूर है.
विद्वाााआअ
यह श्राप की तरहा अक्षर है
जिससे भी यह जुड़ जाए
उसकी तो ज़िंदगी लाश है
प्यार तो खोती है मासून
लोग उसका जीना भी
चीन लेते हैं
शिनगर तो छ्छूट जाता है
उसका नीवाला भी छीन लेते हैं
बिस्तर पर पति का साथ जाता
कामभक्त बिस्तर भी
चीन लेते हैं
“ वी” से विधुर होता है
सारे सोते हैं
वो छुप्कर रोता है
बचों से मं सा प्यार
लड़ाता है
दिल में यादैन संजो कर
पत्नी के लिए तड़प ता है
अपनी खुशियाँ
बचों में खोजता है
पत्नी की परच्छाइन को
बचों में देखता है
व अक्षर इतना क्यूँ
विनाशकारी है?
हर ओर विनाश ही मिलता है
वी शब्द का कैसा यह विकार है
वैश्या, विकलांग विद वा विधुर
सारे ही इस विनाश का शिकार है
“
Thursday, November 27, 2008
गुमनाम दिल अलविदा सुना देगा
Tuesday, November 25, 2008
यह आख़री सलाम मेरा तेरे नाम है
कर ले क़ुबूल इस को यह मेरा सलाम है
यह आख़री सलाम मेरा तेरे नाम है
रुख्ह्सत के वक़्त पलकें भीगने की रस्म क्यूँ
बाबुल के घर को छोर ना बेटी का काम है
यदोण के साये रौशनी होने ना देंगे अब
यह ज़िंदगी हमारी अंधेरों के शाम है
वो नज़्म हो कह मेरी गाज़ल सब तेरे लिए
जब से कितब.ए दिल पे लिखा तेरा नाम है
यह मेरा काम था कह बनाया है आशियाना
अब बिजलियाँ गिराना फलक तेरा काम है
क्या अब बही उसकी याद के बाक़ी हैं कुछ निशान ?
यह फिर ज़ुबान पे तेरे जो “ नीरा” का नाम है
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