कोई प्यार में क़ैद करता है
कोई शब्दों के जाल बुनता है.
सजाना चाहता है अपने दिल में
पर कह नहीं पाता महफ़िल में
कोई ऊँचे महल के सपने दिखाता है
कोई अपने पैसे का ज़ोर दिखाता है.
सोने में तोल कर ग़रीब को ब्याहता है
चार दीवारी में हसरत को दफनाता है
रोटी और कपड़े में बिक जाती ममता है .
डोली के इंतज़ार में उठ जाती चिता है
कैसे कैसे लोग षड्यंत्र रचते हैं
“नीरा” सभी इस रूप से डरते है
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13 comments:
bahut marmik rachana magar satya bayan karti,bahut khub
मार्मिक !
Waah ! bahut sundarta se bhavon ko abhivyakt kiya hai aapne.Bahut sahi kaha.
mehek ji
aapko pasand aayi kirti.
dhanyawaad
anurag ji
aapka bahut bahut shukriya.
nira
ashok ji
अच्छा िलखा है आपने । भावों को प्रभावशाली ढंग से अिभव्यक्त िकया है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-उदूॆ की जमीन से फूटी गजल की काव्यधारा । समय हो तो पढें और प्रतिक्रिया भी दें-
aapko kavita ke bhav pasand aaye
bahut bahut shukriya.
nira
ranjna ji
Waah ! bahut sundarta se bhavon ko abhivyakt kiya hai aapne.Bahut sahi kaha.
aapko kavita ke bhav ache lage
dhanyawaad.
nira
Dear Nira,
Last lines are very effective.Bas aysehi likhati rahiye.diki baat jabanpe na sahi kagazpe jaroor aani chahiye.kisi kisiko sach bolna hai.badi sachhi kavita.
Sapana
bahut hridaysparshi rachna......badhai
जिंदगी में इस सब से बचने का कोई रास्ता नहीं है .इस सब के साथ ही चलना हमारी विवशता है .
Niraa didi:
Jsk!
bahot hi Khoob liKhaa hai aapne!
yuuNhi liKhate raheN!
KhuSh raheN..!
duaapN ke saath ijaazat
aapka
~ Dhaval
रोटी और कपड़े में बिक जाती ममता है .
डोली के इंतज़ार में उठ जाती चिता हैnice
sudnar rachna Nira ji
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