Monday, December 01, 2008

डोली के इंतज़ार में उठ जाती चिता है

कोई प्यार में क़ैद करता है
कोई शब्दों के जाल बुनता है.

सजाना चाहता है अपने दिल में
पर कह नहीं पाता महफ़िल में

कोई ऊँचे महल के सपने दिखाता है
कोई अपने पैसे का ज़ोर दिखाता है.

सोने में तोल कर ग़रीब को ब्याहता है
चार दीवारी में हसरत को दफनाता है

रोटी और कपड़े में बिक जाती ममता है .
डोली के इंतज़ार में उठ जाती चिता है

कैसे कैसे लोग षड्यंत्र रचते हैं
“नीरा” सभी इस रूप से डरते है

13 comments:

mehek said...

bahut marmik rachana magar satya bayan karti,bahut khub

डॉ .अनुराग said...

मार्मिक !

रंजना said...

Waah ! bahut sundarta se bhavon ko abhivyakt kiya hai aapne.Bahut sahi kaha.

"Nira" said...

mehek ji

aapko pasand aayi kirti.
dhanyawaad

"Nira" said...

anurag ji

aapka bahut bahut shukriya.
nira

"Nira" said...

ashok ji
अच्छा िलखा है आपने । भावों को प्रभावशाली ढंग से अिभव्यक्त िकया है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-उदूॆ की जमीन से फूटी गजल की काव्यधारा । समय हो तो पढें और प्रतिक्रिया भी दें-

aapko kavita ke bhav pasand aaye
bahut bahut shukriya.
nira

"Nira" said...

ranjna ji

Waah ! bahut sundarta se bhavon ko abhivyakt kiya hai aapne.Bahut sahi kaha.

aapko kavita ke bhav ache lage
dhanyawaad.
nira

Sapana said...

Dear Nira,
Last lines are very effective.Bas aysehi likhati rahiye.diki baat jabanpe na sahi kagazpe jaroor aani chahiye.kisi kisiko sach bolna hai.badi sachhi kavita.
Sapana

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

bahut hridaysparshi rachna......badhai

padmja sharma said...

जिंदगी में इस सब से बचने का कोई रास्ता नहीं है .इस सब के साथ ही चलना हमारी विवशता है .

Dhaval Rami said...

Niraa didi:

Jsk!

bahot hi Khoob liKhaa hai aapne!

yuuNhi liKhate raheN!

KhuSh raheN..!

duaapN ke saath ijaazat

aapka

~ Dhaval

Randhir Singh Suman said...

रोटी और कपड़े में बिक जाती ममता है .
डोली के इंतज़ार में उठ जाती चिता हैnice

Khare A said...

sudnar rachna Nira ji