Tuesday, December 18, 2007

अम्मी का सपना

अबु कि महनत कहती हूँ


लेकर डोर एक नए

देश मैं

पढ़ लिखकर एक डाक्टर
के वेश में

आया था कुछ कमाने ,
अमी अबु को उनकी

खुशियाँ लौटाने


एक ज़ज्बा एक लगन

इंसानों कि सेवा करता रहा

धर्मो के अदाम्बरों से दूर

अपने पेशे में उतरता रहा

वर्षों जो हात करते रहे

बीमारों कि देख भाल


आज वो हात झूलते हैं

हथ्कादियों में बिल्कुल बहाल

शक कि एक आंधी आई

किसने है यह
बिसात बिछाई


अमी ओर अबु के अरमानों को

किसने आग लगा दी


सदार्न्द डाक्टर को

बना दिया खूंखार आतंकवादी


घर को लुटाने लगे थे

टीवी चैनल

आमी आबू के सपने

बहते उनकी आँखों से निकल निकल
देखकर टी के परदे पर

एक कला सच

उन्होने जनम दिया है

एक आतंकवादी को

मासूमों के मौत के

फरियादी को

उनको नमाज पढ़ते वक़्त

ये ख्याल आता था

कि खुदा कहीं तो होगा

फिर क्यों नही उनको सून पाता


झिलत उनको किसकी दुआ से मिली

वो समझ नही पाए

जिधर देखो पत्रकार ओर प्रश्न खडे थे

वो जाएँ भी तो कहाँ जाएँ


पर आज बचपन में पड़ी

सावित्री ओर सत्यकाम कि कथा याद आती है

जब भी मेरी पत्नी धीरे से मुस्कुराती है

आज उसी के विश्वास के बदौलत

जिंदा हूँ

मैं किसी ओर से नही

अपने देश ओर

उसके लोगों से शर्मिंदा हूँ


मैं निर्दोष था जेल में सड़ता रहा

उन अजनबी लोगो ने मेरी मदत कि

मेरा गावं ओर देश चुपचाप देखता रहा

मानो उन्होने ने मेरी गलती मान ली


मैं जिंदगी कि ज़ंग में जीत कर भी हार गया

क्यूंकि मेरी नज़रों में खोकला
अपनों का प्यार हो गया।

नया मौला ना मौलवी
ना पंडित ना साद





Thursday, September 20, 2007

जो पाए वो रोए जो खोए वो रोए

कान्हा की याद में राधा भी रोए मीरा भी रोए,
सपने दोनो ने एक्सूंग संजोए
राधा ने पाए मीयर्रा ने खोए
जो पाए वो रोए जो खोए वो रोए

दोनो ने प्रीत की झोली फैलाई
कोई ने पाया साथ कान्हा का
भक्ति में कोई रात भर रोए
राधा भी रोए मीरा भी रोए.
जो पाए वो रोए जो खोए वो रोए

मीरा बन बन भटके मिलन को
राधा किश्ना सुंग झूले
दर्शन पनेको कान्हा के
राधा भी रोए मीरा भी रोए.
जो पाए वो रोए जो खोए वो रोए
चाँद तारों में लपाट कर
बहारों में महक भर कर
मुहबत ने आज दिलबर
कैसा संदेशा भेजा है
पढ़ के चूम लेती हून
चूम के पढ़ लेती हून

राहों में पलकें बिछाकर
उमीदों के चिराज़ जलाकर
दिल में सनम के हलचल मचाकर
आँखों में कैसा ख्वाब भेजा है
देख के जाग जाती हून
जाग के देख लेती हून

आवाज़ की मीठी सरगम सजाकर
बोलों की मीठी धून बना कर
तन पैर मेरे जानम लिख कर
गीतों का कैसा पैगाम भेजा है
सुन के डूब जाती हून
डूब के सुनती जाती हून

महन्दी हाटों पैर लगवाकर
लाल जोड़ा पहन्वकर
हाट में चूडी, माथे बींद्या
आज एह कैसा शीनगर बैज़ा है
शर्मा के आईना देख लेती हून
आईना देख के शरमाती हून

आज क्या बात है किस के पास जाती हून
आज क्या बात है किसी को पास पाती हून

Thursday, July 19, 2007

जनता हून आपका सपना हून.

मैं आज दुनिया में आया हून
संभाल लो मुझको बहुत नाज़ुक हून
मुजे से तोह अभी कुछ नही होगा

आप मारी माँ हो मुजे धैर सारा प्यार दो
जब रॉयूं तोह समझो मुजे भूक लगी है.
आपको मारे इशारों को समझना होगा.

मैं बहुत बेबस्स हून अभी मा
मुजे नाज़ुकता से संजोना होगा
मुजे आपको ही बढ़ा करने होगा.

जनता हून आपका सपना हून.
देरसे आया हून पर आपका अपना हून
अपने सपने को धीरे धीरे सजना होगा

आज जो मेरे छोटे छोटे हाट हैं
इनको आईस्ता तमना
मुझे चलना सीखना

मेरी किलकारियों के संघ हासना होगा..
जब सो नेया सकूँ मुजे लोरियाँ सुनना
बाताईं भी कहाँ करनी आती हैं अभी

मेरी टोटल्ली ज़ुबान को समझना होगा
मुजे अँचाल के साए में रखना
हर सर्द हवयों से मुजे बचना होगा

मुजे अपने सीने से लगाना होगा.
बाद मुद्दत के दुनिया में लाया गया हून...
आज ही झोली में तेरी भेजा गया हून
संभाल लो मुझको बहुत नाज़ुक हून

Sunday, June 24, 2007

कफ़न ख़ुद जल उठा

कफ़न ख़ुद जल उतहा

कफ़न ख़ुद जल उतहा
लोगोने दर्द हध से बढ़ा दिया
आज वक़्त ने इंसान को
ख़ुदगार्ज़ बना दिया
देख देख के गुनाह दुनिया में
आज खुदा भी शर्मा उठा
कफ़न ख़ुद जल उठा.

जिस बात का उससे डार था
आज तूफ़ान बड़कर सामने आ गया
नोच लिया जिसको भी अपना समझा.
जीवन जहानाम बना दिया.
मासूम की हालत देख
खुदा भी ख़ून रो उठा
कफ़न ख़ुद जल उठा,

ख़ुदगार्ज़ी मैं कभी
भिक जाती है इज़्ज़ात
कभी मजबूरी में
ख़ुदको बिकने पैर
हो जाती मजबूर
देखकर बेबसी इंसान की
तार तार वो हो उठा
कफ़न ख़ुद जल उठा.

लेती है वोह चिता पैर
बचों की चीख सुनती
मरने का ग़म नही उनको
जागीर का हिस्से कहीं कुम है
खंडा देना बेटा भूल देखकर
कफ़न ख़ुद जल उठा
कफ़न ख़ुद जल उठा

Friday, June 08, 2007

आज एह कैसी रुत बदली

आज एह कैसी रुत बदली कैसी
घनघोर घटता चाह्यी
काले बादलों को साथ लेकर
आंधी मेरी ओर कैसी आई

लूट लिए अरमान सब मेरे
चीन लिया सकूँ दिलका
दे दी दोज़ख़ की ज़िंदगी
बनकर कैसी एह बहार आई.

लहरों की मौज़ों पैर
किसने एह पटवार चलाई
मीता के लकीरैईन तक़दीर की
मुजे कैसे एह रूलाने आई

सपनो का खंडहार बन गया
आँखों में लहू भर दिया
दिलकी ढकन तोड़ कर सनम
साँसे मेरी जान पैर बन आई

गुमनामइयों में खो गाये कैसे

गुमनामइयों में खो गाये कैसे

मेरी चाहाठ में कमी ना थी
इबादत में भी कमी ना थी
तुमःरे वादे भी झूठे ना थे
फिर रिश्ते में दूरी आ गयी

कैसे चार दिन की ही तो बात थी
तुम्हे बेपनाह मुहबत थी
फिर एह बदल छाए गाये कैसे
मेरी दुनिया मुर्ज़ा गयी कैसे .

सावन ने तो बाहर खिलाई थी
हैर ओर ख़ुशियाँ फैलाई थी
हम पैर भी ख़ुशाली चह्यी थी
बगिया दिल की ए उज़ाद गयी कैसे

एक छोटी सी ही तमन्ना थी
हैर दीवार टूट चुकी थी
इस मोड़ पैर साथ चाहा था
खवैश मेरी तभह हो गयी कैसे

जीनेकि आशा चूरकर दी थी
ज़िंदगी दोराहे पैर खड़ी थी
क्यूं उमीड़ैन दिलाई थी
बीच सफ़र छ्होर गाये कैसे

बहारों का पता बताया था
नया सपने सजाए थे
ज़िंदगी में दिए जलाए थे
गुमनामइयों में खो गाये कैसे.

Friday, June 01, 2007

मुजे कफ़न भेज दो पापा.

मुजे कफ़न भेज दो पापा.
मुजे कफ़न भेज दो पापा.
पापा कफ़न भेज दो....
पापा कफ़न भेज दो
आपके बिना कैसे जीयुऊँ
आपके बिना दुनिया ख़ाली है
मुन्ना का भी भेज दो
मेरा कफ़न भेज दो मुझे
पेंसिल भी नही चाहिए
स्कूल की ड्रेस्स भी नही चाहिए
कोई गुरिया भी नही चाहिए

आपकी बहुत याद आती है
जब उंगली पकड़ कर चलना सिखाया.
जब रात जाग कर मुजे सुलाया.
पहली बार जब पढ़ना सिखाया.
खेलों में भी साथ निभाया.
मेरा आब साथ दे दो पापा

मेरे क़दम जब भी डगामाए.
सिद्धि रह पैर आप ही लाए.
आज फिर वो गाड़ी आई है
दुनिया मेरी डज़मगाई है
सिर्फ़ आपकी ही परछाई नज़ार आई है

जो मुजे आप तख पहुँच दे.
आपकी मज़बूत बाहों में छ्छूपा दे
एक बार फिर वो सहारा दे दो
पापा मेरा कफ़न भेज दो
पापा मुजे गुम से बचलो

अपनी गोद में सुलालो
एक मीती नींद सोना चाहती हूँ
अपनी लड़ली को सूलादो पापा.
मुजे मेरा कफ़न भेज दो पापा.
मुजे मेरा कफ़न भेज दो पापा

नीरा