Friday, June 08, 2007

आज एह कैसी रुत बदली

आज एह कैसी रुत बदली कैसी
घनघोर घटता चाह्यी
काले बादलों को साथ लेकर
आंधी मेरी ओर कैसी आई

लूट लिए अरमान सब मेरे
चीन लिया सकूँ दिलका
दे दी दोज़ख़ की ज़िंदगी
बनकर कैसी एह बहार आई.

लहरों की मौज़ों पैर
किसने एह पटवार चलाई
मीता के लकीरैईन तक़दीर की
मुजे कैसे एह रूलाने आई

सपनो का खंडहार बन गया
आँखों में लहू भर दिया
दिलकी ढकन तोड़ कर सनम
साँसे मेरी जान पैर बन आई

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