Sunday, June 24, 2007

कफ़न ख़ुद जल उठा

कफ़न ख़ुद जल उतहा

कफ़न ख़ुद जल उतहा
लोगोने दर्द हध से बढ़ा दिया
आज वक़्त ने इंसान को
ख़ुदगार्ज़ बना दिया
देख देख के गुनाह दुनिया में
आज खुदा भी शर्मा उठा
कफ़न ख़ुद जल उठा.

जिस बात का उससे डार था
आज तूफ़ान बड़कर सामने आ गया
नोच लिया जिसको भी अपना समझा.
जीवन जहानाम बना दिया.
मासूम की हालत देख
खुदा भी ख़ून रो उठा
कफ़न ख़ुद जल उठा,

ख़ुदगार्ज़ी मैं कभी
भिक जाती है इज़्ज़ात
कभी मजबूरी में
ख़ुदको बिकने पैर
हो जाती मजबूर
देखकर बेबसी इंसान की
तार तार वो हो उठा
कफ़न ख़ुद जल उठा.

लेती है वोह चिता पैर
बचों की चीख सुनती
मरने का ग़म नही उनको
जागीर का हिस्से कहीं कुम है
खंडा देना बेटा भूल देखकर
कफ़न ख़ुद जल उठा
कफ़न ख़ुद जल उठा

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