Friday, June 01, 2007

मुजे कफ़न भेज दो पापा.

मुजे कफ़न भेज दो पापा.
मुजे कफ़न भेज दो पापा.
पापा कफ़न भेज दो....
पापा कफ़न भेज दो
आपके बिना कैसे जीयुऊँ
आपके बिना दुनिया ख़ाली है
मुन्ना का भी भेज दो
मेरा कफ़न भेज दो मुझे
पेंसिल भी नही चाहिए
स्कूल की ड्रेस्स भी नही चाहिए
कोई गुरिया भी नही चाहिए

आपकी बहुत याद आती है
जब उंगली पकड़ कर चलना सिखाया.
जब रात जाग कर मुजे सुलाया.
पहली बार जब पढ़ना सिखाया.
खेलों में भी साथ निभाया.
मेरा आब साथ दे दो पापा

मेरे क़दम जब भी डगामाए.
सिद्धि रह पैर आप ही लाए.
आज फिर वो गाड़ी आई है
दुनिया मेरी डज़मगाई है
सिर्फ़ आपकी ही परछाई नज़ार आई है

जो मुजे आप तख पहुँच दे.
आपकी मज़बूत बाहों में छ्छूपा दे
एक बार फिर वो सहारा दे दो
पापा मेरा कफ़न भेज दो
पापा मुजे गुम से बचलो

अपनी गोद में सुलालो
एक मीती नींद सोना चाहती हूँ
अपनी लड़ली को सूलादो पापा.
मुजे मेरा कफ़न भेज दो पापा.
मुजे मेरा कफ़न भेज दो पापा

नीरा

1 comment:

Unknown said...

Hi Niraji, aapke articles sachmuch mein bahut hi dil ko choo denewale aur dard bhare hain. Niraji, burra mat man na lekin itna dardh bhee achha nahin hota. Zindagi aage badhne ka naam hain. Forget painfull things about the past and only meories of the good things. U shall find ki past kitna bhee dard bhara kyon na ho, lekin future has many good things.