बीते
Saturday, May 03, 2008
किसको दे आवाज़ कीससे गुज़ारिश करे
बीते दीनो की याद आज
दरवाज़े पर फिर से
दस्तक दे गयी------------
बाँध किए हुए कुछ
किवाड़ खोल गयी.
एक ढूँदली सी तस्वीर
नोचती नज़ार आती हें
मासूम सी बच्ची
यह कहाँ जानती है
जो हा.त झूला रहें
वो कहाँ कहाँ तक
जाते रहे हैं
रिश्ते के नाम पर
उन दरिंदो के
हातों से नासूर ज़खन
बन जाते हैं
उनके चहरे पर हसी
दिल में कालिख है.
वो झोंक की
बीमारी हैं
समाज पर भारी हैं
जिस ने अभी चलना
भी ना सीखा
बोलना भी ना आता हो
वो हिफ़ाज़त कैसे करे
किसको दे आवाज़ कीससे
गुज़ारिश करे
बढ़ती उमर और बेबसी
खुद पर विश्वास
खो देती हा.
मनती हा कसूर
उसका नही
हिम्मत फिर भी
तोड़ देती है
दहशत की मारी
बेबस बेचारी
एक दीवार बना लेती हा
साँसे लेती – दार दार कर
एक जीवित लाश सी रहती है
घूट घूट कर यूँही
उम्र गुज़ार देती है
बीते
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