Saturday, May 03, 2008
हर ओर है आग फैली
दहशत की
किसने है खेली होली
आज धरती मा ने
भी आँख भिगो ली
क्या आतंकवादी जनता है
मा किी गोध का सूनापन,
क्या उसने अपनी ही
बहन का बलात्कार देखा है.
भाई के टूटे अंग
लाशों में ढूंडे है.
वो क्या जाने इस
कब्र का अहसास
यह जलन यह घूटन
उसने तो एक
कमरे से बैठ कर
एक स्विच ही तो
दबाया है-------
लाशों पर जश्न
मनाया है-----
ज़मीर कब जागेगा.
इन हैवानियत के
ठेकेदारों का
क्या बारूद ही हाल है
इनको इंसानियत
सीखाने का.
इनके भी घर जलाने का
देखो बाहर निकल कर
कहीं इनमें तुम्हारी
मा या बेटी अपनी
इज़्ज़त की दुहाई दे रही है
तुम्हारे भाई के टुकड़े
तो नही समेत रही
आओ अपने आंतक के
जुर्म का अःसास करो
किसी का घर जला है
तो किसी का शरीर
टुकड़ों में पढ़ा है.
कोई ने आँख खोई.
किसी बेटी की लाश पड़ी है
आओ आ कर देखो
तुमने कैसी यह खून की
होली खेली है
कैसी यह होली खेली है
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