Saturday, May 03, 2008


हम परदेसी लोगों को तब देश की याद सताती हा

बारिश जब बरसे हे रिम झिम होता है मान बेक़ाबू
मिट्टि से आने लगती हा सोंधी सोंधी सी खुश्बू
सावन भादों की ऋतु में जब कोयल गीत सुनाती हे
हम परदेसी लोगों को तब देश की याद सताती हे

सावन के वो झूले जिन पेर सखियाँ झूला करती थी
प्यारे प्यारे मौसम थे वो और नज़ारे थे रंगीन
रात दीयों से दीवाली जब रौशण हो जाती हे
हम परदेसी लोगों को तब देश की याद सताती हा

मंदिर सेहरी ओमका नारा आकेर हमें जागता था
गुरु दुवरे के दुवार पे कोइ, चर्च में कोइ जाता था
जब आवाज़ अज़ान की कर कानों से टकराती हे
हम परदेसी लोगों को तब देश की याद सताती हा

बुरफ की चादर में लिप्टी थी देश की हर सूंदर वादी
रंग बिरंगे चंचल फोलों से महकी थी हर क्यारी
आज भी जब फोलों की खुश्बू तंन-मॅन को महकाती हे
हम परदेसी लोगों को तब देश की याद सताती हा

कैसे भूलें मा-बाबा को सूब कुछ उनसे पाया हे
भाई का हाथ भी याद आता हे राखी बिन जो सूना हे
जब अपनों का ज़िक्र चले जब अपनों की बात आती हे
हम परदेसी लोगों को तब देश की याद सताती हा

अपने देश को लौट के जाएँ दिल में यही तामना हे
अये परदेस में रहने वालों अपना देश फिर अपना हे
अपने देश की कोइ भी चीज़ जब अपने हाथ में आती हे
हम परदेसी लोगों को तब देश की याद सताती हा

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