Sunday, May 04, 2008


रंगों में इतना फ़र्क़ कियूं. है?

एक ही माँ की दो बेटियाँ हैं
फिर भी अलग अलग कियूं हैं?
क़ुद्रत्त का करिश्मा कैसा?
रंगों में इतना फ़र्क़ कियूं है?

माँ, बाप किी दोनों आंखें
फिर भी इतनी जुड़ा जुड़ा कियूं हैं?
एक बेटी गोरी और दूजी
साँवली कियूं है?

बचपन तो बी.त्त गया
लोरियां सुन सुन कर
आई जवानी तो काई सवाल
मूह उठाए सामने आए
एक तो ब्याही जाएगी,
दूजी की बारात कैसे आएगी?

जो भी देखने आए
गोरा रंग ही उसको भाए
साँवली बिटिया किसी को ना भाए
काइया इस रचना मेण खोट है?
अपनी लाड्ली बिटिया को कैसे ब्याहे?

क्या रंगत के कारण
बिन ब्याही रह जाए?
कियूं यह अन्याए है?
कियूं इक गोरी, दूजी साँवली है?

उस ने कितने ही रंगों से
इंद्रा-धनुष बनाए
इंसान जिसकी माया समझ ना पाए
पक्का रंग छोऱ के
कचे रंग के पीछे
भागता ही भागता जाए

कभी तो कोई आएगा!
इसमें कृष्ण भी पाएगा!
अपनीी दुल्हन बना के मेरी गुड़िया को
ब्याह ले जाएगा!
कोइ इक दिन आवश्या आएगा!!

2 comments:

आलोक said...

क्या कहें इस गोरा प्रेम का!
वैसे कविताओं की दुनिया में पदार्पण पर बधाई।

"Nira" said...

Aalok ji
aapka bahut bahut shukriya
aate rahiyega muje acha lagega