Saturday, May 03, 2008

सपना---हक़ीकत से दूर

आज हम भी मिलकर-----------
ऐसा ही घरोंदा बनायें
दिल को इतने करीब लायें,
प्यार के वो फूल सजायें.
महक जाए जिससे मेरा आँगन
सपने को साकार बनायें
बच्चे भरें किल्कारियाँ
जब नन्ही सी मुस्कान देखूं-----------
आशा के दीपक जगमगायें

हल्के हल्के पाओं से गूज़ें
पायल की झंकार -----------
मुन्ने में मैं तुम को पायूं
विश्वास के में दीप जलायूं.
दूं अपनी परछाई बेटी को
जो हुमारा सम्मान. कहलाए

फिर आए वो सुहानी घड़ी
करके बिधाई बेटी की -----------
ले आयूं एक गुड़िया पायरी सी
बने जो इज़्ज़ात हमरिी
करे जो राज इस घर पर
कहलाए वो बहू दुलारी

देके ज़िम्मेदारी सारी
हम करले यात्रा की त्यारी.
पूरे किए हैं कर्ताव सारे
आब राम भजने की आई है बारी.

1 comment:

Dev said...

Bahut acha likha hai aapne....
Badhai..
http://dev-poetry.blogspot.com/