मेरा कोठ मेरा मुक़द्दर है
कौन कहता है यह मेरा घर है
हार के ज़िंदगी से आई हूँ
मैं यहाँ कब खुशी से आई हूँ
मैं ने पहने जो पाँवों में घुँघरू
मुझ को कहने लगा तवाईफ तू
यह ना सोचा कि ग़म की मारी हूँ
अपनी मजबूरियों से हारी हूँ
जब बगावत में सिर उठाया है
मैं ने ज़ालिम का कोड़ा खाया है
एक पल भी जो पाँवों रोक लिया
मुझ को सबने लहू लुहान किया
याद आता है मुझ को भी बचपन
मेरे माँ-बाप उनका वो आँगन
मेरे दिल पर भी मस्ती छाई थी
मैं ने भी इक पतंग उड़ाई थी
आज खुद बुन गयी हूँ एक पतंग
रोज़ उड़ती हूँ एक डोर के संग
मेरे पाँवों हैं और घुँघरू हैं
अब ये आँखें हैण और आँसू हैं
मुस्कुराहट का अब ना कोई निशान
नाम तो अब भी है मीरा “मुस्कान”
कौन है जिस से अपना हाल कहूँ
सब यह कहते हैं मैं तवाईफ हूँ
Tuesday, September 30, 2008
Wednesday, September 17, 2008
विष से भरा ये "व' अक्षर...
" व" अक्षर इतना विनाशकारी क्यूँ है
क्यूँ इससे मिलते शब्द रोते हैं
वैश्या, विकलांग, विधवा तीनो
दर्द से भरे होते हैं.
वैश्या कोई भी जानम से नही होती
हालत या मजबूरी उससे कोठे पर
ले जाती है., भंध कर घूँगरू
नाचती है रिज़ाति हैं. छुप कर
आँसू बहती है.
दो प्यार के बोलों को तरस
जाती है,
मौत की दुहाई हर रोज़
खुदा से मांगती
विकलांग कोई भी
मर्ज़ी से नही जानम लेता
फिर क्यूँ सब ग्रिना से देखते है
उससे भी हक़ हैं
उतने ही अधिकार हैं
जितना सब को है.
क्यूँ उससे चार दीवारी तक ही
सिमट कर रखते है
क्या उससे प्यार का हुक़ नही
क्या उसके जज़्बातों में
कमी है-----------
या दुनिया का दिल इतना छोटा है
बताओ यह किसका कसूर है.
विधवा
यह श्राप की तरहा अक्षर है
जिससे भी यह जुड़ जाए
उसकी तो ज़िंदगी लाश है
प्यार तो खोती है मासून
लोग उसका जीना भी
छीन लेते हैं
शिंघार तो छूत्त जाता है
उसका नीवाला भी छीन लेते हैं
बिस्तर पर पति का साथ जाता
कामभक्त बिस्तर भी
छीन लेते हैं
हर ओर विनाश ही मिलता है
व शब्द का कैसा यह विकार है
वैश्या, विकलांग विद्वा.
सारे ही इस विनाश का शिकार ह
Monday, September 15, 2008
मुझे जानम दो माँ
कब से याकुल बैठा हून आस लगाए
कोई तो आए मूज़े प्यार से गले लगाए
तेरा बीज हून, जानम लेना चाहता हून
माँ की बाहें मूज़े भी झूला झूलाए
तुम जिस खूबसूरत दुनिया में रहती हो
मैं वो दुनिया देखना चाहता हून
आजकल क्या हुआ है क्यूँ बचों से सब रूठे हैं
विज्ञान की तरक़ी से बचे भी अब चुनते हैं
बेटी अघर हो कोख में, सौदा कर लेते हैं
देकर मौत मासूम को कैसे चैन से रहते हैं
ओर अगर हुआ कोई नुक्स मुज में तो
क्या मेरा भी गला घोंट दोगि माँ
क्या मैं तरसता रह जायूंगा जानम लेने को
ममता भरे आँचल को माँ के दूड पीने को
माँ मूज़े खुद से जुड़ा ना करो
तेरा अंश बनके आना चाहता हून
बहुत बार मरा हून जानम से पहले ही
माँ मैं तुज़े माँ बुलाना चाहता हून
माँ अपने आँचल में छुपाले मुझको
तेरे सीने लगकर मैं हसना मुस्कुराना चाहता हून
आब ना सोचो,मूज़े जानम दे दो माँ
आब तो मूज़े जानम दे दो माँ
कोई तो आए मूज़े प्यार से गले लगाए
तेरा बीज हून, जानम लेना चाहता हून
माँ की बाहें मूज़े भी झूला झूलाए
तुम जिस खूबसूरत दुनिया में रहती हो
मैं वो दुनिया देखना चाहता हून
आजकल क्या हुआ है क्यूँ बचों से सब रूठे हैं
विज्ञान की तरक़ी से बचे भी अब चुनते हैं
बेटी अघर हो कोख में, सौदा कर लेते हैं
देकर मौत मासूम को कैसे चैन से रहते हैं
ओर अगर हुआ कोई नुक्स मुज में तो
क्या मेरा भी गला घोंट दोगि माँ
क्या मैं तरसता रह जायूंगा जानम लेने को
ममता भरे आँचल को माँ के दूड पीने को
माँ मूज़े खुद से जुड़ा ना करो
तेरा अंश बनके आना चाहता हून
बहुत बार मरा हून जानम से पहले ही
माँ मैं तुज़े माँ बुलाना चाहता हून
माँ अपने आँचल में छुपाले मुझको
तेरे सीने लगकर मैं हसना मुस्कुराना चाहता हून
आब ना सोचो,मूज़े जानम दे दो माँ
आब तो मूज़े जानम दे दो माँ
खंज़र की धार आज हुँने देख ली
कैसा संदेशा भेजा है
देके इंतज़ार दिल में आँखों से आँसू बहता hoga
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