Wednesday, September 17, 2008
विष से भरा ये "व' अक्षर...
" व" अक्षर इतना विनाशकारी क्यूँ है
क्यूँ इससे मिलते शब्द रोते हैं
वैश्या, विकलांग, विधवा तीनो
दर्द से भरे होते हैं.
वैश्या कोई भी जानम से नही होती
हालत या मजबूरी उससे कोठे पर
ले जाती है., भंध कर घूँगरू
नाचती है रिज़ाति हैं. छुप कर
आँसू बहती है.
दो प्यार के बोलों को तरस
जाती है,
मौत की दुहाई हर रोज़
खुदा से मांगती
विकलांग कोई भी
मर्ज़ी से नही जानम लेता
फिर क्यूँ सब ग्रिना से देखते है
उससे भी हक़ हैं
उतने ही अधिकार हैं
जितना सब को है.
क्यूँ उससे चार दीवारी तक ही
सिमट कर रखते है
क्या उससे प्यार का हुक़ नही
क्या उसके जज़्बातों में
कमी है-----------
या दुनिया का दिल इतना छोटा है
बताओ यह किसका कसूर है.
विधवा
यह श्राप की तरहा अक्षर है
जिससे भी यह जुड़ जाए
उसकी तो ज़िंदगी लाश है
प्यार तो खोती है मासून
लोग उसका जीना भी
छीन लेते हैं
शिंघार तो छूत्त जाता है
उसका नीवाला भी छीन लेते हैं
बिस्तर पर पति का साथ जाता
कामभक्त बिस्तर भी
छीन लेते हैं
हर ओर विनाश ही मिलता है
व शब्द का कैसा यह विकार है
वैश्या, विकलांग विद्वा.
सारे ही इस विनाश का शिकार ह
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment