Saturday, November 29, 2008

विष से भरा ये "वी' अक्षर...

"वी" अक्षर इतना विनाशकारी क्यूँ है
क्यूँ इस्स.से मिलते शब्द रोते हैं
वैश्या, विकलांग, विधवा विधुर
दर्द से भरे होते हैं.

वैश्या कोई भी जानम से नही होती
हालत या मजबूरी उससे कोठे पर
ले जाती है., भांध कर घूँगरू
नाचती है रिज़ाति हैं. छ्छूप कर
आँसू बहती है.
दो प्यार के बोलों को तरस
जाती है,
मौत की दुहाई हा रोज़
खुदा से मांगती

विकलांग कोई भी
मर्ज़ी से नही जानम लेता
फिर क्यूँ सब घृणा से देखते है
उससे भी हक़ है
उतना ही अधिकार है
जितना सब को है.
क्यूँ उससे चार दीवारी तक ही
समैट कर रखते है
क्या उससे प्यरा का हुक़ नही
क्या उसके जज़्बातों में
कमी है-----------
या दुनिया का दिल इतना छोटा है
बताओ यह किसका कसूर है.

विद्वाााआअ
यह श्राप की तरहा अक्षर है
जिससे भी यह जुड़ जाए
उसकी तो ज़िंदगी लाश है
प्यार तो खोती है मासून
लोग उसका जीना भी
चीन लेते हैं
शिनगर तो छ्छूट जाता है
उसका नीवाला भी छीन लेते हैं
बिस्तर पर पति का साथ जाता
कामभक्त बिस्तर भी
चीन लेते हैं

वीसे विधुर होता है
सारे सोते हैं
वो छुप्कर रोता है
बचों से मं सा प्यार
लड़ाता है
दिल में यादैन संजो कर
पत्नी के लिए तड़प ता है
अपनी खुशियाँ
बचों में खोजता है
पत्नी की परच्छाइन को
बचों में देखता है
अक्षर इतना क्यूँ
विनाशकारी है?

हर ओर विनाश ही मिलता है
वी शब्द का कैसा यह विकार है
वैश्या, विकलांग विद वा विधुर
सारे ही इस विनाश का शिकार है

Thursday, November 27, 2008

गुमनाम दिल अलविदा सुना देगा


क्या करूँ दिल से राहतों की बातें
दर्द से भरा दिल सकूँ क्या देगा
जब भी देगा इक जुनून नया देगा

ख़ाता दिल की है जो कर बैठा गुस्ताख़ी,
हम तो नज़र झुकाए बैठे थे
जाने कब दिल की धड़कन बढ़ा देगा

दिल में बसने वाले धड़कन पहचान लेते हैं
बिन कहे दिल की बात जान लेते हैं
यह तजरुबा कुछ हौसला बढ़ा देगा

ज़िंदगी की राह में ना जाने कब
वो हमसफर बन जाते हैं
दिल के दरवाजे जब कोई खटखटा देगा

ऐसे ही कुछ हालात हुमारे हैं
अल्फ़ाज़ दिल में ही अटक जाते हैं
जब दिल कोई मासूमियत जगा देगा

रुसवाई से डरते हैं, यूँही ही
आँखों में आँसू सुख जाते हैं
गुमनान दिल अलविदा सुना देगा

हम दूउर रहकर भी साथ निभा जाते
इस दुनिया नही तो उस दुनिया में
दिल तुमसे मिलने का नया वादा देगा

Tuesday, November 25, 2008

यह आख़री सलाम मेरा तेरे नाम है

कर ले क़ुबूल इस को यह मेरा सलाम है
यह आख़री सलाम मेरा तेरे नाम है

रुख्ह्सत के वक़्त पलकें भीगने की रस्म क्यूँ
बाबुल के घर को छोर ना बेटी का काम है

यदोण के साये रौशनी होने ना देंगे अब
यह ज़िंदगी हमारी अंधेरों के शाम है

वो नज़्म हो कह मेरी गाज़ल सब तेरे लिए
जब से कितब.ए दिल पे लिखा तेरा नाम है

यह मेरा काम था कह बनाया है आशियाना
अब बिजलियाँ गिराना फलक तेरा काम है

क्या अब बही उसकी याद के बाक़ी हैं कुछ निशान ?
यह फिर ज़ुबान पे तेरे जोनीराका नाम है