Friday, November 07, 2008

कोई भाई, बहेन से ना बिछड़े


बचपन में एक नन्हा सा हाथ
बँधा जिसपर प्यार से धागा.
बढ़ते बढ़ते उम्र बढ़ी
छोटी कलाई मजबूत हाथ बनी
पूरा हर वादा हुआ
कभी गैरों से तो कभी अपनो से
रख़्शा बहेन की भाई ने की

एक अटूट प्यार के बंधन में
बाँधती चली गयी
काई सावन बीत गये
भैया की यह प्यारी बहना
पिया के घर परदेश गयी
उनके रंग में रंग गयी
पर जो पीछे छोड़ आई यादें
कभी ना वो भूल पाई

रोते भाई की कलाई, नन्ही सी मुस्कान
यही तो उसकी यादें थीं
दूर कहीं छुप कर
सब की नज़ारों से बच कर
भाई की याद में आँसू बहती
बचपन की यादों में घिर जाती

बीते पल गिनती, कभी हस्ती
तो कभी आँखें पोंचा करती.
दिल तड़प ता आँसू बहते.
ताहवारों पर जब रंग चड़ते
कोई भाई, बहेन से ना बिछड़े
बस यही दुआ भघवन से करती
बस यही दुआ भघवन से करती

6 comments:

viren said...

bahut hi achchi kavita likhi hai aapne. dhanyawad

Udan Tashtari said...

अच्छी रचना है मगर जीवन के नियम हैं. ऐसा ही होता है.

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

अच्छा िलखा है आपने । मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है ।

http://www.ashokvichar.blogspot.com

"Nira" said...

ahut hi achchi kavita likhi hai aapne. dhanyawad

viren ji
aapko rachna pasand aayi
bahut bahut shukriya

"Nira" said...

अच्छी रचना है मगर जीवन के नियम हैं. ऐसा ही होता है.
Sameer ji
aapke comments ka hamesha intazaar rahta hai
aapko pasand aayi rachna dil se abhari hoon.
shukriya

"Nira" said...

ashok ji

aapka bahut bahut shukriya
zaroor aapke blog par aayoongi