बचपन में एक नन्हा सा हाथ
बँधा जिसपर प्यार से धागा.
बढ़ते बढ़ते उम्र बढ़ी
छोटी कलाई मजबूत हाथ बनी
पूरा हर वादा हुआ
कभी गैरों से तो कभी अपनो से
रख़्शा बहेन की भाई ने की
एक अटूट प्यार के बंधन में
बाँधती चली गयी
काई सावन बीत गये
भैया की यह प्यारी बहना
पिया के घर परदेश गयी
उनके रंग में रंग गयी
पर जो पीछे छोड़ आई यादें
कभी ना वो भूल पाई
रोते भाई की कलाई, नन्ही सी मुस्कान
यही तो उसकी यादें थीं
दूर कहीं छुप कर
सब की नज़ारों से बच कर
भाई की याद में आँसू बहती
बचपन की यादों में घिर जाती
बीते पल गिनती, कभी हस्ती
तो कभी आँखें पोंचा करती.
दिल तड़प ता आँसू बहते.
ताहवारों पर जब रंग चड़ते
कोई भाई, बहेन से ना बिछड़े
बस यही दुआ भघवन से करती
बस यही दुआ भघवन से करती
6 comments:
bahut hi achchi kavita likhi hai aapne. dhanyawad
अच्छी रचना है मगर जीवन के नियम हैं. ऐसा ही होता है.
अच्छा िलखा है आपने । मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
ahut hi achchi kavita likhi hai aapne. dhanyawad
viren ji
aapko rachna pasand aayi
bahut bahut shukriya
अच्छी रचना है मगर जीवन के नियम हैं. ऐसा ही होता है.
Sameer ji
aapke comments ka hamesha intazaar rahta hai
aapko pasand aayi rachna dil se abhari hoon.
shukriya
ashok ji
aapka bahut bahut shukriya
zaroor aapke blog par aayoongi
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