Wednesday, November 12, 2008

तलाश


यह आनसूँ ना जाने किसकी याद में
चालक आएँ हैं.
जाने इस को किसकी तलाश है,
सुबा की रोशनी में आँखें चारों ओर
एक चेहरा तलाशती है.
दिल की धड़कन किसी की आवाज़ को तरसती है.
आरज़ू जगाए अंधेरोन में चिराग जला लेती है
फिर नयी तलाश शुरू हो जाती है.

बचपन से सूनते हैं
जोड़िए आकाश में बनती हैं
हात बदाकार खुद ढूंड लेती हैं.
यह बातें किताबी ही लगती हैं
मान की कहानी लगती है.
सब झूटी सब झूटी हैं
आँख हमारी आज भी रोती
हर ओर आँखे प्यार में बरसती है

चकोर चाँद को तरसती
कोयल बारिश को तड़पति
लहराएँ मौजों पर लहराती
साहिल से मिलने को तरसती हैं
मेरी रूह की तरह भटकती हैं.
मारी रूह की तरह भटकती हैं
फिर नयी तलाश शुरू करती है

No comments: